बचपन कि हर भोर से, मेरे कर्णों में चहुँ ओर से
गूँज रहा है तेरा नाम,अब ध्यान में हूँ चारों याम ....
माँ ने प्रेम बेल तब बोई,जब हृदय में न था कोई
अब तो चहुँ ओर फैल गई, चाहे कछु कहा करे कोई .....
बाल मन के कोमल भाव ने,सजा लिया तुझे नयनों में
पवित्र ह्रदय की धारा में,बहा लिया है स्वयं को मैंने ....
समय की धारा पर,जब अम्बर से बरसेगी धार
तब देखोगे मेरी प्रीत के सारे रंग,बाँधोगे मुझे अपनी डोर के संग....
इस आलौकिक अनुभूति में,तेरे चिर अनुराग की प्रीति में
सीप का मोती बनूँगी ,तेरे हृदय की तली में -मैं
जिस पर चढ़ेगी प्रेम की परत ,हो जाएगी प्रेम की बढ़त पर बढ़त....
तेरे हर रूप को मैंने बाँधा है अपने चार प्रहर में
कभी सखा -कभी प्यारा ,कभी प्राण - कभी सहारा....
चाह की चाह में खोती गई,परत पर परत रंगती गई
दिन दूनी रात चौगनी ,बनती गयी, मैं जीवन -संगनी....
बहती गयी प्रेम की धारा मैं ,भीगती रही और तृप्त हुई मैं
चाह न रही अब कोई ,मेरी प्रीत में रंग चढ़े है कई....
"जो सेवा करते हैं वह प्रेम के अधिकारी हैं "
ऐसा सुना था मैंने कहीं ,और मैंने पूजा बाल रूप से
बिना सोचे विचारे निर्मल मन से,
चाहूँ तुम झलकते रहना ,मेरे हृदय के नैनों से....
कोई मुझे देखे मन से,सिर्फ तुम्हें पाए वह मेरे नैनों में
मुझे भी ऐसों से मिलाना ,तेरा प्रतिबिम्म पाऊँ उनके नैनों
तुझ से एकाकार होने का ,यही मार्ग मुझे सूझता है....
सब कहत है ,मैं हो गई बावरी ,कहूँ मैं हो गई साँवरे की साँवरी
सुन लो तुम अरज हमारी ,सामने तुम हो,जब आँखें मूंदे हमारी....
जन्म मरण के चक्र में न उलझाना, जीवन की अभिलाषा हमारी
बना देना चाहे झाँझर, चरणों की तुम्हारी
बजती और पड़ी रहूँगी शरण तिहारी
या तो बना देना यशोदा माँ की अन्गुरियाँ
लेती रहूँगी सदा में ,तेरी बलईयाँ....
तुम न मानो हमें अपना घनश्याम,अधरों पर मेरे नाम है तुम्हारा सुबह-शाम.....
तेरे संग ने मुझमें,जीने की ऐसी अलख जगाई
इन आनंदाश्रुओं को मैं न कभी रोक पाई
सोचती हूँ जाने दो धुल,ह्रदय का अंतनिर्हित मैल.....
होगा निर्मल मन का धरातल और बीतेगा कृपा से हर-पल
होगा तेरा-मेरा अटूट ऐसा नाता ,बन जाऊंगी मैं तेरी मुदिता .....
अब मैं क्यों करूं किसी से अरज ,बन चुकी हूँ मैं चरणों की रज
यह है प्रेम की अजब भाषा ,इसे कब,कौन और कहाँ है समझा
यह तो है "कृष्ण -प्रेम की मंजूषा",न चाहूँ इस से बहार निकलना
यह है मेरे ह्रदय की अर्जी , समझना चाहो तो तुम्हारी है मर्जी ....
मैं पिघल कर भी जा रही ,ना बदलेगी मेरी यह धारा
ठोकर,मोड़ बाधा न रही,क्यों की मैं बनी "प्रेम की धरा"......
मेरे जीवन के हवन कुंड में ,हर ग्रास में तेरी भक्ति की आहुति हो ...तेरी कृपा की तेज अग्नि से ,मेरा जीवन आलोकित हो
तेरी तेज अग्नि की लालिमा से ,
मेरे चेहरे की आभा दमके , जिसमे प्रेम की धारा बहे....
तेरी प्रीत ने अलख जगाई है मुझमेंऔर ऐसी रीति की डोर बाँधी है
जिसमें मैं बही जा रही हूँ......
यह जीवन का कौन सा मौन प्रवाह है ,जिसमें स्वयं को पा जाती हूँ
तेरे चिर अनुराग से एकाकार होने का अहसास है
हे कान्हा ! मैं बहती ही रहना चाहती हूँ ,जिसमें मैं ,मैं नहीं रह जाती हूँ ......
लगता हे तेरे चरणों में झांझर बन पड़ी हूँ
जहाँ ...न अहंकार है....स्वाभिमान है...न मान है ....
ना इच्छा ....ना अधिकार ....ममता ....ना चाह ....
सिर्फ आंतरिक मौन ....एकाकार ....एकांत .....
मैं हूँ ऐसे जहाज का पंछी,जो चहूँ ओर भ्रमण कर लौटे
चाहे मन भटक जाये चहूँ ओर पर सांझ होते लौटे तेरी ओर
जब तेरे विचार में खोती हूँ ,तो तन-मन के कष्टों से दूर रहती हूँ
यह कैसी चेतना अवस्था है ....
कैसी तेरी कृपा की डोर है,जो मुझे तुझसे बाँधी रहती है
तेरे प्रेम के आगे सारे बंधन तुच्छ से प्रतीत होते है....
तुझ से मिलने आऊँगी मैं,तेरे ही बसाये राधे-कुँज में
लोग कहते है आंसा नहीं है,ह्रदय का तुझ से मिलना
क्यों नहीं उतरते तेरे नयनों में
लेकर मन में तेरे लिए सरलता...सहजता...और सरसता....
जिनसे ह्रदय में भरता सदा प्रेमाश्रु
तुझे पाने का यह उपाय सदा मुझे है सूझता ......
प्याला कृष्ण नाम का,अधरों पर लगा ले
प्यास की अलख जगा ले .....
तू मतवाला बन जायेगा,चरणों में स्वयं को पायेगा
समर्पण से शांति पायेगा,चिंता से मुक्त जीवन जियेगा
प्रिय प्याला जितना उतरेगा,उतना मन में धीर धरेगा
अपनी नाव प्रेम-धारा में बहा रे,उतरेगा क्षीर -सागर प्रभु द्वारे ......
भक्ति रस से सराबोर रचना.....
ReplyDeleteसोच, शब्द, भाव और अहसास - बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट..
ReplyDeletePrarthana जी आपके profile me Gender: Male लिखा है उसे ठीक करलीजिएगा...माफी चाहूंगा मेरी सलाह को अन्यथा न लें
prarthana ji,
ReplyDeletesarvpratham mere blog par aane ke liye dil se dhanyvaad. krashn bhakti ke rang me dubi aapki is rachna ne prem-diwaani meera ki yaad dila di. bahut sundar.
poonam
एक औऱ मीरा हो गई बावरी
ReplyDeleteकान्हा के नाम की दुहाई
देती दर दर है
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
ReplyDeleteप्रेम और समर्पण की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने अपनी रचना के माध्यम से
bahut hi prabhavpurn avam bhakti ras me dubi aapki rachna bhakti bhav ki taraf baha le gai.
ReplyDeletebahut sundar.
poonam
KYA LIKHA HAI JI .. MAIN TO ISCKON KE MANDIR ME JAA PAHUNCHA JI .. MAN ME BHAKTI RAS BHAR GAYA HAI.. AAPKO SALAAM ..KYA KHOOB LIKHA HAI , MAN KO CHOO GAYI KAVITA .. BADHYI HO
ReplyDeleteVIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
कृष्ण नाम का प्याला पीकर....भूतनाथ में कुछ उमड़ पडा....जो कुछ मन में बहक रहा था....इक बादल सा वो घुमड़ पडा.....!!!
ReplyDeleteprem pagi kavita ke liye badhai. mahila divas ki shubhkamnayen.
ReplyDeleteबाल मन के कोमल भाव ने,सजा लिया तुझे नयनों में
ReplyDeleteपवित्र ह्रदय की धारा में,बहा लिया है स्वयं को मैंने ....
wow ..Fantastic !
.
very nice...
ReplyDeleteभक्ति रस से सराबोर रचना|
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को होली की बहुत मुबारकबाद एवं शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसादर
समीर लाल
प्रेम और समर्पण की सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteVery Nice ..plz visit my blog http://yogeshamana.blogspot.com/
ReplyDeleteएक बहुत अच्छी आध्यात्मिक रचना या कहें भजन और शिक्षाप्रद भी समर्पण से ही शान्ति मिलती है श्री कृष्ण शरणं मम
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत बधाई
आपके ब्लॉग पर पहली दफा आना हुआ.आकर भक्तिरस से सराबोर हो गया है मन मेरा.
ReplyDeleteप्रभु में आपकी भक्ति नितप्रति ही इस प्रकार से बढती जाये कि जो भी आपके संपर्क में आये वे भी भक्ति रस में डूब जाएँ.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
आपकी भक्तिमय उपस्थिति की अपेक्षा है.
बहुत ही सुन्दर कृष्ण के प्रेम रस में भीगी हुई कविता ... पढकर मन प्रसन्न हो गया है .. आपको बधाई
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
ReplyDeleteएस .एन. शुक्ल
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत बधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bahur adbhut prmatma ki tarah
ReplyDeletebahut sunder bhav ke sath .adbhut bhav.......
ReplyDeleteसुन्दर रचना, बहुत सार्थक प्रस्तुति
ReplyDelete, स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत बहुत बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteप्रिय प्याला जितना उतरेगा,उतना मन में धीर धरेगा
ReplyDeleteअपनी नाव प्रेम-धारा में बहा रे,उतरेगा क्षीर -सागर प्रभु द्वारे ......
बहुत सुदर !!
Bahut hi bhavpurn evm prabhavkari rachna. Aapko evm aapke pariwar ko deepawali ki hardik subhkamna.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । .मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ।.दीपावली की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteलेकर मन में तेरे लिए सरलता...सहजता...और सरसता....
ReplyDeleteजिनसे ह्रदय में भरता सदा प्रेमाश्रु
तुझे पाने का यह उपाय सदा मुझे है सूझता ......
आपकी भक्तिपूर्ण भावमय अनुपम प्रस्तुति
हृदय को उल्लासित करती है,पवित्र भाव
जगाती है.प्रभु से प्रार्थना है भक्ति रस की
निर्मल धार आपके माध्यम से ब्लॉग जगत को
पावन कर दे.बहुत बहुत हार्दिक आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर अवश्य आईयेगा.
Radhey Radhey **********
ReplyDeleteतुझ से मिलने आऊँगी मैं,तेरे ही बसाये राधे-कुँज में
ReplyDeleteलोग कहते है आंसा नहीं है,ह्रदय का तुझ से मिलना
क्यों नहीं उतरते तेरे नयनों में
लेकर मन में तेरे लिए सरलता...सहजता...और सरसता....
जिनसे ह्रदय में भरता सदा प्रेमाश्रु
तुझे पाने का यह उपाय सदा मुझे है सूझता ......
Pure and devotional song.
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
मैं आप सभी की बहुत आभारी हूँ .....
ReplyDeleteधन्यवाद ...